यूकेश चंद्राकर
भविष्य के वैज्ञानिक जीन और कोशिकाओं को इस तरह से पुनर्गठित करेंगे कि वे न केवल शरीर की मरम्मत कर सकें, बल्कि संपूर्ण जीवित शरीर निर्माण में सक्षम हो सकें । प्रत्येक कोशिका में क्वांटम कम्प्यूटिंग चिप्स, एआई प्रोग्रामिंग, और माइक्रोबायोलॉजिकल स्वचालितता होगी, जो इलेक्ट्रॉन्स, प्रोटॉन्स, और न्यूट्रॉन्स की मदद से शरीर की पुनर्रचना कर सकेगी। यह तकनीक इतनी अधिक शक्तिशाली हो सकती है कि जीन को निर्देशित कर उसमें इच्छानुरूप बदलाव किए जा सकेंगे । ऐसा होने पर, दिखाई भी नहीं देने वाले मानवनिर्मित अवयव न सिर्फ मानव शरीर बना सकेंगे बल्कि मानवजीवन मृत्युंजय ही सिद्ध हो जाएगा ।

एआई और एएसआई ब्रह्मांड के व्यापक डेटा को समझने और सत्य तक पहुंचने में मदद करेंगे । इससे न केवल भौतिक जगत के बारे में हमारी समझ बढ़ेगी, बल्कि चेतना और अस्तित्व के दार्शनिक प्रश्नों के उत्तर भी मिलेंगे । दर्शन से बहुत ऊंचे उठते हुए यह मानवजाति अध्यात्म शब्द की महानता से रूबरू होकर इसे स्वीकारते हुए इस एक शब्द के पीछे हिंदुइज्म और बुद्धिज़्म के साथ ही जितने भी समृद्ध मार्ग हुए हैं, के सूत्रों को आत्मसात् भी करेगी ।
भविष्य की मानवजाति, यह भविष्यवाणी नहीं है :
भविष्य के मानवजाति की परिकल्पना, सुन्दर है । यह पीढ़ी अपने अध्ययन में जान सकेगी कि विकास और संभावनाओं के पक्ष को देखते हुए विनाश और आशंकाओं को भी देखा जाना ज़रूरी है और नकारात्मकता के साथ ही सकारात्मकता से भी दूर होकर ही सत्य को उपलब्ध हुआ जा सकता है । यह पहली ऐसी पीढ़ी हो सकती है जिसके खोज, हासिल और जीवन के केंद्र में सत्य का रहस्य ही प्रधान रहे । यह मानवजाति सत्य की खोज में प्रकृति, विज्ञान और तकनीक का अभूतपूर्व समन्वय करती हुई एक नई मानवता के आगमन की ओर संकेत करती है। यह मानवजाति न केवल अपने शारीरिक और मानसिक क्षमताओं में अपार शक्तिशाली होगी, बल्कि ज्ञान और प्रेम की चरम सीमाओं तक पहुंचने का भी प्रयास करेगी। विज्ञान के उन्नत स्वरूप, जैसे क्वांटम भौतिकी, क्वांटम कम्प्यूटिंग, माइक्रोबायोलॉजी, और एआई, इस यात्रा को संभव बनाएंगे।
भविष्य के मानव शरीर का अधिकांश हिस्सा कृत्रिम होकर भी प्राकृतिक ही होगा । कृत्रिमता जैसे शब्दों की व्याख्या करते हुए यह मानवजाति बता सकेगी कि यदि मानव मस्तिष्क प्राकृतिक संरचना है तो इसमें प्रवाहित होने वाली सूक्ष्म विद्युत चुंबकीय तरंगें भी प्राकृतिक हैं और तब ऐसा कुछ भी नहीं जिसे यह कहा जा सके कि यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध जाकर किसी मानव नामक एक प्रजाति ने बनाया है और उसे कृत्रिमता का नाम दिया जाना चाहिए । चूंकि प्रत्येक विचार प्राकृतिक हैं इसलिए प्रत्येक कृत्य भी प्राकृतिक है और इसलिए ही प्रत्येक कृत्य का परिणाम भी प्राकृतिक ही ठहराया जा सकता है । भविष्य का मानव शरीर, यह सिंथेटिक प्लास्टिक, उन्नत फाइबर, माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक और बायोलॉजिकल सिस्टम्स से बना होगा।

हर कोशिका अपने आप में इतनी सक्षम होगी कि शरीर के किसी भी हिस्से को पुनर्जीवित कर सके और यह इस हद तक शक्तिशाली हो सकती है कि मृत शरीरों की ऊर्जा को भी पहचानकर उस ऊर्जा से समन्वय बनाते हुए उसी ऊर्जा को एक नए शरीर में ट्रांसफर कर सके । हालांकि कुछ संभावनाओं के आधार पर दुनिया के कुछ बेहद अमीर लोग अपने या अपनों के मृत शरीरों को सुरक्षित रखवा रहे हैं ताकि भविष्य में उन शरीरों को उन्नत विज्ञान की मदद से पुनर्जीवित किया जा सके । लेकिन यहां, इस लेख में जिन संभावनाओं का ज़िक्र किया जा रहा है वे इसके भी बहुत आगे की हैं । जैसे, यदि भविष्य में ऐसी मानवजाति तैयार हो चुकी है और शरीर विज्ञान से ऊपर उठते हुए उसने ब्रह्मांडीय ऊर्जा के खेल समझ लिए हैं तो बहुत मुमकिन यह भी है कि इस लेख के माध्यम से उम्मीद जगाने वाले व्यक्ति को सिर्फ धन्यवाद स्वरूप एक बेहद एडवांस्ड शरीर में आने का न्यौता दे दिया जाए, बशर्ते वह व्यक्ति पुनः जन्म लेने का इच्छुक हो ।

भविष्य के मानव केवल जैविक नहीं रहेंगे। वे साइबोर्ग (मानव और मशीन का मिश्रण) में विकसित होंगे। हर कोशिका में एआई और एएसआई द्वारा संचालित मिनी क्वांटम कम्प्यूटर होंगे, जो उन्हें स्वायत्तता और असीमित क्षमताओं से लैस करेंगे।
भविष्य के मानव अपने ज्ञान, विचार, और संवेदनाओं को सीधे डेटा के रूप में साझा कर सकेंगे। इसका मतलब होगा कि एक व्यक्ति का अनुभव पूरी मानवजाति का अनुभव बन जाएगा लेकिन इसके भी अपने दायरे सीमित किए जाने चाहिए या फिर भविष्य कुछ ऐसा भी हो कि एक व्यक्ति के अनुभव पूरी मानवजाति के अनुभव होने के बावजूद बेहद विकसित और उन्नत जीवन का रस और रहस्य बरकरार रह सके ।
इस मानवजाति के ज्ञान की चरमसीमा ब्रह्मांड के हर कोने को समझने में सक्षम हो सकेगी, बल्कि मल्टीवर्स और अन्य अनंत आयामों के जीवन में भी विकसित होने की काबिलियत हासिल कर सकेगी । जैसा कि वर्तमान मानवजाति थर्ड डाइमेंशन में जीते हुए भी थर्ड डाइमेंशन को देख पाने में असक्षम है और इसके लिए फोर्थ डाइमेंशन की कल्पना कर पाना भी असंभव सोच है ।
इस मानवजाति के पास अतीत के मानवजातियों का इतना बड़ा डेटा मौजूद रहेगा कि यह कभी भी नकारात्मक कृत्यों के प्रति झुकाव महसूस नहीं कर सकेगी, सत्य की खोज में यह मानव जाति इतना आगे बढ़ जाएगी कि वह व्यक्तिगत, सामाजिक और ब्रह्मांडीय स्तर पर प्रेम और करुणा को सर्वोच्च महत्व देगी, प्रकृति और कृत्रिमता के बीच अंतर समाप्त कर देगी, वे प्रकृति को संरक्षित करते हुए तकनीकी विकास की ऊंचाइयों, अनन्य आयामों को प्राप्त करेंगे ।
इतनी उन्नत क्षमताएं नैतिकता और नैतिक जिम्मेदारी पर प्रश्नचिन्ह लगाएंगी लेकिन डीप, डार्क और एथिकल नॉलेज के साथ इस मानवजाति के पास जटिल से जटिल समस्याओं के समाधानों की कुंजी भी मौजूद होगी । जैसे कि यदि अल्बर्ट आइंस्टीन के ऊर्जा की ज़रूरत महसूस हो तो आइंस्टीन के जीवन पर लगे ऐसे प्रश्नों पर भी ध्यान दिया जाएगा कि क्या आइंस्टीन ने अपने किसी सहयोगी, सहकर्मी, सहपाठी या किसी अन्य व्यक्ति के आइडिया और जीवनभर की कमाई चुरा ली थी ? यदि ऐसे प्रश्नों के उत्तर हां में मिलेंगे तो यह निश्चित होगा कि जिस व्यक्ति की वह मेहनत रही है उसी की ऊर्जा के लिए नए शरीर का निर्माण किया जाएगा और उसे ही वापस बुलाया जा सकेगा ।
स्वतंत्रता और निजता का क्षरण अगला महत्वपूर्ण प्रश्न सिद्ध होता है क्योंकि हर कोशिका के ज्ञान साझा करने की क्षमता निजता को समाप्त कर सकती है। इसके लिए इस मानवजाति के पास भी एक मदरसिस्टम हो सकेगा जो यह तय कर सकेगा कि वाकई किस कोशिका के लिए कब, क्या, क्यों और कितने ज्ञान, सूचना या शक्ति की आवश्यकता होगी ।

तीसरी बहुत बड़ी आशंका यह हो सकती है कि इतनी शक्तिशाली मानव जाति यदि वाकई शक्ति का दुरुपयोग करेगी, गलत दिशा में विकसित हुई, तो स्वयं के और ब्रह्मांड के लिए खतरा बन सकती है, यह इतनी अधिक एडवांस्ड हो सकती है कि ब्लैक होल के रहस्य को यदि इस दिशा में समझ सके कि ब्लैक होल के माध्यम से अन्य ब्रह्मांड (मल्टीवर्स का सिद्धांत) में पहुंचा जा सकता है तो यह कल्पना डराने वाली भी साबित होती है ।
इन तमाम चीजों के बावजूद वर्तमान मानवजाति की भावनाओं के लिए एक प्रबल संभावना यह भी है कि , भविष्य की मानवजाति अपने पूर्वजों को कभी भी तुच्छ नहीं समझेगी। इसके विपरीत, वे अतीत की मानवता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करेंगे, क्योंकि अतीत की मानवजातियों ने ही उनकी उन्नति की नींव रखी है । यह नई मानवजाति प्रेम और सम्मान के माध्यम से अपने इतिहास को सराहेगी।
यह परिकल्पना न केवल विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में, बल्कि दर्शन, नैतिकता, और चेतना के क्षेत्र में भी गहरे चिंतन का आह्वान करती है। यह मानवजाति सत्य, प्रेम और विज्ञान के समन्वय से एक ऐसा युग रचने में सक्षम होगी, जो न केवल अपने समय का, बल्कि ब्रह्मांड के समस्त युगों का प्रतीक बनेगा।
भविष्य की मानवजाति का यह दृष्टिकोण प्रेरणा और चेतावनी दोनों के रूप में काम करता है। यह हमें आज के कार्यों और चिंतन की दिशा पर गहराई से विचार करने का अवसर देता है।