2014 में रूस और यूक्रेन के बीच क्रीमिया संकट आधुनिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने न केवल दोनों देशों के संबंधों में स्थायी दरार पैदा की, बल्कि यूरोप और वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य को भी प्रभावित किया। यह संकट फरवरी 2014 में यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के सत्ता से हटाए जाने और रूस द्वारा क्रीमिया के कब्जे के रूप में उभरा। इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में रूस के बढ़ते सैन्य हस्तक्षेप और पश्चिमी देशों के साथ उसके संबंधों में तनाव को उजागर किया।
क्रीमिया की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
क्रीमिया का क्षेत्र यूक्रेन और रूस दोनों के लिए ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है। क्रीमिया प्रायद्वीप का इतिहास विभिन्न साम्राज्यों और संस्कृतियों से जुड़ा हुआ है, जिसमें प्राचीन ग्रीक, तुर्क और तातार शामिल हैं। हालांकि, यह क्षेत्र विशेष रूप से 18वीं शताब्दी में रूसी साम्राज्य के अधीन आ गया, जब कैथरीन द ग्रेट ने 1783 में क्रीमिया को ओटोमन साम्राज्य से छीन लिया।
रूसी साम्राज्य के पतन और सोवियत संघ के गठन के बाद, क्रीमिया सोवियत संघ का हिस्सा बना रहा। हालांकि, 1954 में सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव ने क्रीमिया को यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य को सौंप दिया। यह कदम उस समय प्रतीकात्मक था क्योंकि सोवियत संघ एकीकृत था और रूस तथा यूक्रेन के बीच सीमाएं कोई बड़ा मुद्दा नहीं थीं। लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद, 1991 में जब यूक्रेन एक स्वतंत्र राष्ट्र बना, तो क्रीमिया यूक्रेन का हिस्सा बना रहा। हालांकि, क्रीमिया की आबादी का बड़ा हिस्सा रूसी-भाषी था, और रूस के साथ इसके ऐतिहासिक संबंध इसे एक संवेदनशील मुद्दा बनाते रहे।
यूरोमैदान आंदोलन और यानुकोविच का पतन
क्रीमिया संकट की जड़ें 2013 के अंत और 2014 की शुरुआत में यूक्रेन में हुए राजनीतिक संकट में निहित हैं। 2010 में विक्टर यानुकोविच ने यूक्रेन के राष्ट्रपति पद की शपथ ली। यानुकोविच एक रूस समर्थक नेता थे, जिन्होंने अपने शासन के दौरान रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे। लेकिन उनकी नीतियों के चलते यूक्रेन में राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ गया। 2013 में यानुकोविच की सरकार ने यूरोपीय संघ के साथ एक महत्वपूर्ण व्यापार और राजनीतिक समझौते को खारिज कर दिया, जो पश्चिमी देशों के साथ यूक्रेन के संबंधों को मजबूत कर सकता था। इसके बजाय, उन्होंने रूस के साथ एक करीबी आर्थिक साझेदारी पर जोर दिया।
इस निर्णय ने यूक्रेन में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया, जिन्हें “यूरोमैदान” आंदोलन कहा गया। यूरोमैदान आंदोलन में लाखों यूक्रेनी नागरिकों ने भाग लिया, जिन्होंने यानुकोविच की नीतियों के खिलाफ और यूरोपीय संघ के साथ निकट संबंधों के समर्थन में आवाज उठाई। ये विरोध प्रदर्शन यूक्रेन के पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों के बीच विभाजन को भी दर्शाते थे। पश्चिमी यूक्रेन यूरोपीय संघ के साथ घनिष्ठ संबंध चाहता था, जबकि पूर्वी यूक्रेन और क्रीमिया में रहने वाली रूसी-भाषी आबादी रूस के साथ संबंधों को प्राथमिकता देती थी।
फरवरी 2014 में, यूरोमैदान आंदोलन ने विक्टर यानुकोविच की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। यानुकोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा, और यूक्रेन में एक पश्चिम समर्थक सरकार का गठन हुआ। रूस के लिए यह एक गंभीर झटका था, क्योंकि यानुकोविच का पतन यूक्रेन में रूस के प्रभाव को कमजोर कर रहा था। इसी समय, रूस ने क्रीमिया पर अपना ध्यान केंद्रित किया।
रूस का क्रीमिया पर कब्जा
फरवरी 2014 के अंत और मार्च 2014 की शुरुआत में, रूस ने क्रीमिया पर तेजी से कार्रवाई की। 27 फरवरी को रूसी समर्थक सशस्त्र सैनिकों ने क्रीमिया की राजधानी सिम्फरोपोल में सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया। इन सैनिकों को “लिटिल ग्रीन मेन” के रूप में जाना गया क्योंकि उनके पास रूसी सैन्य प्रतीक नहीं थे, लेकिन बाद में यह स्पष्ट हो गया कि ये रूसी सेना के सदस्य थे। रूस ने इस कार्रवाई को यह कहकर सही ठहराया कि वह क्रीमिया में रहने वाली रूसी-भाषी आबादी की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है, जो यूक्रेन में चल रहे राजनीतिक अस्थिरता के बीच खतरे में थी।
16 मार्च 2014 को क्रीमिया में एक जनमत संग्रह आयोजित किया गया, जिसमें कथित तौर पर 95% से अधिक मतदाताओं ने रूस के साथ क्रीमिया के एकीकरण का समर्थन किया। हालांकि, यह जनमत संग्रह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं था और इसे व्यापक रूप से गैरकानूनी माना गया। पश्चिमी देशों और यूक्रेन ने इस जनमत संग्रह और क्रीमिया के रूस में विलय को मान्यता देने से इनकार कर दिया। इसके बावजूद, रूस ने 18 मार्च 2014 को क्रीमिया को अपने क्षेत्र में शामिल करने का आधिकारिक निर्णय लिया।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
क्रीमिया पर रूस के कब्जे ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक गंभीर संकट पैदा कर दिया। पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ ने इस कदम की कड़ी निंदा की और रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें क्रीमिया के विलय को अवैध करार दिया गया और रूस से इसे वापस लेने की मांग की गई। हालांकि, रूस ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और कहा कि क्रीमिया के लोगों ने स्वतंत्र रूप से रूस के साथ एकीकरण का निर्णय लिया है।
अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस पर कई आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंध लगाए, जो आज भी लागू हैं। इन प्रतिबंधों ने रूसी अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया, लेकिन रूस ने अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया। क्रीमिया संकट के बाद, पश्चिमी देशों और रूस के बीच संबंधों में एक नई शीतयुद्ध जैसी स्थिति उभरी।
क्रीमिया के बाद डोनबास संघर्ष
क्रीमिया पर कब्जे के बाद, यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में संघर्ष भड़क उठा। डोनबास क्षेत्र, जिसमें डोनेट्स्क और लुहांस्क प्रांत शामिल हैं, में रूस समर्थक विद्रोहियों ने यूक्रेनी सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इस संघर्ष को रूस की सक्रिय सहायता मिली, हालांकि रूस ने आधिकारिक रूप से वहां अपनी सैन्य उपस्थिति से इनकार किया। डोनबास संघर्ष ने यूक्रेन को और अस्थिर कर दिया और दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया।
इस संघर्ष में हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग बेघर हुए। हालांकि संघर्षविराम के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन यह विवाद अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। रूस और यूक्रेन के बीच यह संघर्ष एक स्थायी समस्या बना हुआ है, जिसे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के बावजूद हल नहीं किया जा सका है।
रूस का दावा और क्रीमिया का रणनीतिक महत्व
रूस ने क्रीमिया पर कब्जा करने के अपने कदम को विभिन्न तरीकों से सही ठहराने की कोशिश की। सबसे प्रमुख तर्क यह था कि क्रीमिया में रहने वाली रूसी-भाषी आबादी की सुरक्षा सुनिश्चित करना रूस की जिम्मेदारी थी। इसके अलावा, रूस ने यह भी दावा किया कि क्रीमिया ऐतिहासिक रूप से रूस का हिस्सा था और उसे यूक्रेन को सौंपा जाना एक गलती थी, जिसे अब सुधार लिया गया है।
क्रीमिया का रूस के लिए रणनीतिक महत्व भी है। क्रीमिया में स्थित सेवास्तोपोल बंदरगाह रूसी नौसेना के लिए एक महत्वपूर्ण बेस है, जो काला सागर और भूमध्य सागर में रूस की नौसैनिक गतिविधियों के लिए प्रमुख केंद्र है। इस बंदरगाह पर रूस का नियंत्रण न केवल उसकी सैन्य शक्ति को बढ़ाता है, बल्कि इसे यूरोप और मध्य एशिया में अपने प्रभाव को बनाए रखने में भी मदद करता है।
अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवाधिकार मुद्देक्रीमिया पर कब्जे ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन के कई सवाल खड़े किए। यूक्रेन और पश्चिमी देशों ने रूस पर यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। रूस के इस कदम को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत आक्रमण और कब्जा के रूप में देखा गया। क्रीमिया में जनमत संग्रह को भी अवैध माना गया क्योंकि यह यूक्रेन की अनुमति के बिना आयोजित किया गया था।
इसके अलावा, क्रीमिया में मानवाधिकार उल्लंघनों के भी कई आरोप लगे। तातार अल्पसंख्यक, जो क्रीमिया की एक महत्वपूर्ण आबादी है, ने रूस के कब्जे के बाद उत्पीड़न और भेदभाव का सामना किया।