यूकेश चंद्राकर ।
बीजापुर, छत्तीसगढ़। लगभग दो दशक पहले, बस्तर के माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में माओवादियों के खिलाफ़ एक जनाक्रोश उभरकर आया था जिसे सलवा जुडूम के नाम से जाना गया था । इस आंदोलन के दरम्यान और इसके बाद अराजक और शिक्षा विरोधी तत्वों ने लगभग 2000 स्कूलों को तोड़ दिया था । यदि एक अनुमान लगाया जाए तो इन स्कूलों को तोड़ दिए जाने के बाद लगभग 10 हजार से अधिक बच्चे शिक्षा से पूरी तरह वंचित हो गए, और अशिक्षित ही किशोर या युवा हो चुके हैं । जिला प्रशासन बीजापुर की अनूठी पहल ‘स्कूल वेंडे वर्राटु योजना’ को प्रतिष्ठित स्कॉच पुरस्कार 2024 के सेमीफाइनल में स्थान मिला है। यह उपलब्धि न केवल जिले के लिए बल्कि समूचे राज्य के लिए गर्व का विषय है। इस योजना के तहत वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा के स्तर को सुधारने और बच्चों को मुख्यधारा में जोड़ने के प्रयास किए गए हैं।
क्या है स्कॉच पुरुस्कार ?
स्कॉच ग्रुप भारत का एक प्रतिष्ठित स्वतंत्र थिंक टैंक है, जो देशभर में विकास और प्रशासन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों को पहचान प्रदान करता है। स्कॉच पुरस्कार प्रशासनिक सुधारों, नवाचार, प्रभावी सेवा वितरण और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने वाली पहलों को प्रोत्साहन देने के लिए दिए जाते हैं। इसकी शुरुआत वर्ष 2003 में हुई थी और तब से यह सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में उत्कृष्टता का प्रतीक बन चुका है।
स्कॉच पुरुस्कार किन्हें दिए जाते हैं ?
स्कॉच पुरस्कार मुख्य रूप से उन योजनाओं, परियोजनाओं और पहलों को दिए जाते हैं जो:
1. समाज के कमजोर वर्गों के जीवन को बेहतर बनाने में योगदान देती हैं।
2. नवाचार और प्रभावी समाधान पेश करती हैं।
3. सरकार और संस्थाओं द्वारा लागू किए गए अनुकरणीय कार्यों को सामने लाती हैं।
4. शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटल गवर्नेंस, कौशल विकास और महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करती हैं।
स्कॉच पुरस्कार का महत्व
1. राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता: यह पुरस्कार उत्कृष्ट कार्यों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का एक माध्यम है।
2. प्रेरणा स्रोत: यह अन्य जिलों और संस्थाओं को समाज-हितैषी कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करता है।
3. नवाचार का प्रोत्साहन: यह नई और प्रभावी परियोजनाओं को विकसित करने और लागू करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
4. नीति निर्माण में सहयोग: स्कॉच पुरस्कार विजेता परियोजनाएं नीति निर्माताओं को बेहतर नीतियां तैयार करने में मदद करती हैं।
‘स्कूल वेंडे वर्राटु’ योजना की सफलता

बीजापुर जिला प्रशासन ने वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में इस योजना के माध्यम से स्कूलों को पुनर्जीवित करने का सराहनीय प्रयास किया है। इसके तहत बंद पड़े स्कूलों को फिर से शुरू किया गया और कम से कम 4000 बच्चों को शिक्षा से पुनः जोड़कर, बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है । इस पहल से क्षेत्र में न केवल शिक्षा का स्तर बढ़ा है, बल्कि सामाजिक बदलाव की भी नींव पड़ी है।बीजापुर की यह पहल स्कॉच सेमीफाइनल तक पहुंचकर यह साबित करती है कि सुदूर और पिछड़े क्षेत्रों में भी सच्ची नीयत और मेहनत से बड़े बदलाव संभव हैं। अब सभी की निगाहें पुरस्कार के फाइनल परिणाम पर टिकी हुई हैं।
स्कूल फिर चले अभियान: बच्चों और क्षेत्र के भविष्य की आधारशिला
बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का हर प्रयास न केवल उनका व्यक्तिगत विकास सुनिश्चित करता है, बल्कि समाज और क्षेत्र के समग्र विकास की नींव भी रखता है। बीजापुर जिला प्रशासन द्वारा आरंभ किए गए स्कूल फिर चले अभियान ने इस तथ्य को प्रमाणित किया है। यह अभियान माओवाद प्रभावित और शिक्षा से वंचित क्षेत्र में बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए एक क्रांतिकारी पहल साबित हुई है। इस लेख में, हम इस अभियान के सामाजिक और आर्थिक महत्व, इसकी रणनीतियों, और इसके बच्चों एवं क्षेत्र के भविष्य पर पड़ने वाले प्रभावों की गहराई से चर्चा करेंगे।
समस्या की पृष्ठभूमि
बीजापुर, जो आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से पिछड़े क्षेत्रों में गिना जाता है, शिक्षा के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय स्तर की तुलना में पिछड़ा हुआ है। यहाँ के अधिकतर बच्चे शाला त्यागी या अप्रवेशी थे, जो आगे चलकर उनकी जीवन गुणवत्ता और रोजगार के अवसरों पर नकारात्मक प्रभाव डालते। शिक्षा का अभाव इस क्षेत्र में गरीबी, बाल मजदूरी और माओवादी प्रभाव जैसे गंभीर मुद्दों को बढ़ावा देता है, हालांकि यह कथन शिक्षा विरोधी तत्वों को खटकने वाला ज़रूर है लेकिन तार्किक और प्रायोगिक तौर पर अमिट सत्य भी है ।
अभियान की शुरुआत और उद्देश्य
स्कूल फिर चले अभियान, जिसे स्थानीय भाषा में स्कूल वेंडे वर्राट पंडुम कहा गया, का उद्देश्य 6 से 18 वर्ष के बच्चों को स्कूली शिक्षा से जोड़ना था। जिला प्रशासन ने शत-प्रतिशत बच्चों को स्कूल तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए प्रशासन ने बहुस्तरीय रणनीतियों को अपनाया।
रणनीति और नवाचार
1. समग्र सर्वेक्षण और पहचान
अभियान के तहत 550 गांवों में डोर-टू-डोर सर्वेक्षण किया गया। 2400 कर्मचारियों की टीम ने 579 गांवों में 7 हजार बच्चों की पहचान की, जिनमें से 4 हजार बच्चों को तुरंत स्कूल में दाखिला दिलाया गया।
2. ग्रामीण जागरूकता अभियान
शिक्षकों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, स्वास्थ्य कर्मियों और पंचायत सचिवों की टीम ने रैलियाँ और जागरूकता शिविरों का आयोजन किया।
ग्रामीणों को प्रेरित करने के लिए कलेक्टर की पाती (पत्र) और बच्चों को वेलकम किट देकर आकर्षित किया गया।
3. बंद स्कूलों को पुनः खोलना
20 वर्षों से बंद 28 स्कूलों को पुनः प्रारंभ किया गया, जिसमें 1 हजार बच्चों को नामांकित किया गया।
4. स्थानीय भागीदारी और सामुदायिक सहयोग
ग्रामीणों और पालकों को शिक्षा के महत्व से अवगत कराते हुए उन्हें अभियान का हिस्सा बनाया गया। यह प्रयास इस दृष्टि से अनूठा रहा कि ग्रामीण अब स्वेच्छा से स्कूलों और शिक्षकों की माँग कर रहे हैं।
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
1. बच्चों के भविष्य पर सकारात्मक प्रभाव
इस अभियान ने हजारों बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में जोड़ा। शिक्षा न केवल बच्चों को बेहतर भविष्य की ओर ले जाती है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाती है।
2. समाज में जागरूकता का संचार
ग्रामीण समुदायों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी। यह सामाजिक परिवर्तन का परिचायक है, जो क्षेत्र को प्रगति की ओर अग्रसर करेगा।
3. माओवादी प्रभाव में कमी
शिक्षा से वंचित क्षेत्रों में माओवादी गतिविधियाँ अधिक होती हैं। शिक्षा का प्रसार बच्चों और युवाओं को ऐसी गतिविधियों से दूर रखेगा।
4. स्थानीय रोजगार और विकास
बंद स्कूलों को पुनः खोलने और बच्चों की बढ़ती संख्या के कारण क्षेत्र में शिक्षकों और अन्य संबंधित कर्मचारियों की आवश्यकता बढ़ेगी, जिससे रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे।
चुनौतियाँ और समाधान
अभियान के दौरान कई चुनौतियाँ भी सामने आईं, जैसे ग्रामीणों का प्रारंभिक विरोध, माओवादी क्षेत्रों में सर्वेक्षण की कठिनाई, और संसाधनों की सीमितता। इन चुनौतियों को सामूहिक प्रयास, ग्रामीण भागीदारी, और प्रशासनिक दृढ़ता के माध्यम से हल किया गया।
भविष्य की राह
अभियान की सफलता ने यह सिद्ध किया है कि शिक्षा के प्रति सही दृष्टिकोण और सामुदायिक भागीदारी से असंभव दिखने वाले कार्य भी संभव हो सकते हैं।
अब यह आवश्यक है कि:
1. बच्चों की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित की जाए।
2. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति की जाए।
3. ग्रामीण स्तर पर शिक्षा के प्रति सतत जागरूकता अभियान चलाए जाएँ।
स्कूल फिर चले अभियान न केवल बीजापुर जिले बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल है। इसने यह सिद्ध कर दिया कि प्रशासनिक नवाचार, सामुदायिक सहभागिता और शिक्षा के प्रति समर्पण किसी भी क्षेत्र की दशा और दिशा बदल सकता है। यह अभियान न केवल बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बना रहा है, बल्कि पूरे क्षेत्र को विकास और स्थिरता की ओर ले जा रहा है।
यह पहल अन्य जिलों और राज्यों को भी प्रेरित करती है कि वे अपने क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करने हेतु इस प्रकार की योजनाओं को अपनाएँ। शिक्षा, बच्चों का अधिकार ही नहीं, बल्कि समाज की प्रगति की आधारशिला भी है।