Monday, June 2, 2025
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सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस-यूक्रेन संबंध

यूकेश चंद्राकर

1991 में सोवियत संघ के विघटन ने रूस और यूक्रेन के संबंधों में एक नया अध्याय खोला। यूक्रेन, जो लगभग सात दशक तक सोवियत संघ का हिस्सा था, अब एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभर रहा था। इस नई स्वतंत्रता के साथ, यूक्रेन को न केवल अपनी राजनीतिक पहचान को पुनः स्थापित करना था, बल्कि रूस के साथ एक जटिल और चुनौतीपूर्ण संबंध को भी संतुलित करना था। दोनों देशों का साझा इतिहास, संस्कृति, और आर्थिक साझेदारी ने उनके बीच घनिष्ठ संबंध बनाए रखा, लेकिन साथ ही उनके बीच राजनीतिक मतभेदों ने संघर्ष का बीज भी बोया।

सोवियत संघ का विघटन और यूक्रेन की स्वतंत्रता

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, यूक्रेन ने स्वतंत्रता की घोषणा की। सोवियत संघ से अलग होने के लिए 1 दिसंबर 1991 को यूक्रेन में एक जनमत संग्रह आयोजित किया गया, जिसमें लगभग 90% लोगों ने स्वतंत्रता के पक्ष में मतदान किया। इस कदम ने रूस के साथ यूक्रेन के संबंधों को मौलिक रूप से बदल दिया, क्योंकि अब यूक्रेन सोवियत संघ का एक उपग्रह राज्य नहीं था, बल्कि एक संप्रभु राष्ट्र था।

यूक्रेन की स्वतंत्रता रूस के लिए एक महत्वपूर्ण झटका था। सोवियत संघ के विघटन के बाद, रूस खुद को नए वैश्विक परिदृश्य में फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहा था। यूक्रेन का स्वतंत्र होना केवल भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी रूस के लिए चुनौतीपूर्ण था। मॉस्को के लिए यूक्रेन केवल एक पड़ोसी देश नहीं था, बल्कि वह इसे अपने “रूसी सभ्यता” का एक अभिन्न हिस्सा मानता था। रूस और यूक्रेन के बीच ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों ने इस स्वतंत्रता को और जटिल बना दिया।

आर्थिक और राजनीतिक मतभेद

सोवियत संघ के विघटन के बाद, रूस और यूक्रेन के बीच कई महत्वपूर्ण मुद्दे उभरे, जिनमें आर्थिक और राजनीतिक मतभेद प्रमुख थे। यूक्रेन की अर्थव्यवस्था सोवियत संघ पर गहराई से निर्भर थी, और स्वतंत्रता के बाद उसे नए साझेदारों और आर्थिक मॉडल की तलाश करनी थी। यूक्रेन का उद्योग, विशेषकर भारी उद्योग, ऊर्जा के लिए रूस पर निर्भर था, और यह निर्भरता उसके स्वतंत्र होने के बाद भी बनी रही। रूस और यूक्रेन के बीच गैस और ऊर्जा के मुद्दों ने उनके संबंधों को और तनावपूर्ण बना दिया।

1990 के दशक में, यूक्रेन ने अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्गठित करने और बाजार सुधार लाने की कोशिश की। लेकिन इन सुधारों में कई चुनौतियां आईं। यूक्रेन की भ्रष्टाचार की समस्या और कमजोर राजनीतिक ढांचा उसके विकास में बाधक बना। इस समय के दौरान, रूस और यूक्रेन के बीच गैस आपूर्ति और ऊर्जा समझौतों को लेकर कई विवाद हुए। रूस ने अपनी ऊर्जा आपूर्ति को राजनीतिक दबाव के एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया, और यूक्रेन ने अपने ऊर्जा स्रोतों को विविध बनाने की कोशिश की।

1994 का बुडापेस्ट मेमोरेंडम

रूस और यूक्रेन के बीच संबंधों का एक महत्वपूर्ण पहलू परमाणु हथियारों से जुड़ा था। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, यूक्रेन दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा परमाणु हथियार धारक देश बन गया था। हालांकि, 1994 में बुडापेस्ट मेमोरेंडम के तहत यूक्रेन ने अपने सभी परमाणु हथियारों को त्यागने और रूस, अमेरिका और ब्रिटेन की सुरक्षा गारंटी प्राप्त करने का फैसला किया। इस समझौते के तहत रूस ने यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का वचन दिया।

बुडापेस्ट मेमोरेंडम ने यूक्रेन के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा ढांचा प्रदान किया, लेकिन 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद, इस समझौते की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल उठे। यूक्रेन का मानना है कि रूस ने इस समझौते का उल्लंघन किया है, जबकि रूस ने इसे अपनी सुरक्षा चिंताओं के संदर्भ में खारिज कर दिया।

2004 का ऑरेंज रेवोल्यूशन

2004 में यूक्रेन में हुए राष्ट्रपति चुनाव ने रूस और यूक्रेन के बीच संबंधों में एक और मोड़ लाया। चुनावों में रूसी समर्थित उम्मीदवार विक्टर यानुकोविच को शुरू में विजेता घोषित किया गया था, लेकिन चुनावों में व्यापक धांधली के आरोप लगे। इसके परिणामस्वरूप, यूक्रेन में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिन्हें “ऑरेंज रेवोल्यूशन” के नाम से जाना जाता है। विरोध प्रदर्शन के बाद चुनाव फिर से कराए गए, जिसमें पश्चिम समर्थक उम्मीदवार विक्टर युशचेंको ने जीत हासिल की।

ऑरेंज रेवोल्यूशन रूस के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि यूक्रेन में पश्चिम समर्थक सरकार की स्थापना ने रूस की रणनीतिक योजनाओं को बाधित किया। रूस ने यूक्रेन को अपने प्रभाव क्षेत्र में बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन ऑरेंज रेवोल्यूशन ने यह स्पष्ट कर दिया कि यूक्रेन की जनता यूरोपीय संघ और नाटो के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना चाहती है। यह घटना रूस और पश्चिमी देशों के बीच भू-राजनीतिक संघर्ष का प्रतीक बन गई, जो आज भी जारी है।

गैस युद्ध और रूस का दबाव

2000 के दशक में रूस और यूक्रेन के बीच संबंधों में ऊर्जा आपूर्ति एक प्रमुख विवाद का विषय बन गया। 2006 और 2009 में, रूस ने यूक्रेन को गैस आपूर्ति में कटौती की, जिससे यूरोप के कई हिस्सों में गैस की कमी हो गई। ये “गैस युद्ध” केवल आर्थिक नहीं थे, बल्कि इनका राजनीतिक महत्व भी था। रूस ने यूक्रेन पर दबाव बनाने के लिए गैस आपूर्ति को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया, जबकि यूक्रेन ने अपने ऊर्जा स्रोतों को विविध बनाने और यूरोपीय बाजारों के साथ जुड़ने की कोशिश की।

गैस युद्धों ने यह दिखाया कि रूस अपनी आर्थिक और ऊर्जा नीति को यूक्रेन पर राजनीतिक दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहा था। हालांकि, यूक्रेन ने इन चुनौतियों के बावजूद यूरोप और पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया। गैस विवादों ने रूस और यूक्रेन के बीच अविश्वास को और गहरा कर दिया, जो आगे चलकर और बड़े संघर्षों का आधार बना।

2010 में यानुकोविच की वापसी

2010 में रूस समर्थक विक्टर यानुकोविच एक बार फिर यूक्रेन के राष्ट्रपति बने। उनकी जीत रूस के लिए एक राहत की तरह थी, क्योंकि यानुकोविच ने रूस के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी और यूरोपीय संघ के साथ बढ़ते संबंधों को धीमा कर दिया। लेकिन यह स्थिति लंबे समय तक नहीं चल सकी। 2013 में, जब यानुकोविच ने यूरोपीय संघ के साथ एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, तो यूक्रेन में फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। ये विरोध प्रदर्शन, जिन्हें “यूरोमैदान” आंदोलन कहा गया, अंततः यानुकोविच की सरकार के पतन का कारण बने और रूस के साथ संबंधों में एक और संकट पैदा हुआ।

2014 का क्रीमिया संकट और डोनबास युद्ध

2014 में, रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया, जो यूक्रेन के लिए एक बड़ा झटका था। रूस ने यह कदम उठाते हुए कहा कि क्रीमिया में रहने वाली रूसी-भाषी आबादी को सुरक्षा प्रदान करना उसकी जिम्मेदारी है, जबकि यूक्रेन और पश्चिमी देशों ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करार दिया। क्रीमिया संकट ने रूस और यूक्रेन के संबंधों में एक स्थायी दरार पैदा की, जिसे अभी तक पाटा नहीं जा सका है।

क्रीमिया पर कब्जे के बाद, रूस समर्थक विद्रोहियों और यूक्रेनी सेना के बीच डोनबास क्षेत्र में संघर्ष छिड़ गया। यह युद्ध अब भी जारी है और दोनों देशों के बीच संघर्ष का प्रमुख बिंदु बना हुआ है। रूस ने डोनबास के विद्रोहियों को सहायता प्रदान की, लेकिन इसने कभी आधिकारिक रूप से वहां सैन्य हस्तक्षेप की बात स्वीकार नहीं की। इस युद्ध ने रूस और यूक्रेन के संबंधों को और तनावपूर्ण बना दिया और दोनों देशों के बीच शत्रुता को गहरा कर दिया।

सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस और यूक्रेन के संबंधों ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। प्रारंभिक वर्षों में आर्थिक और राजनीतिक मतभेदों के बावजूद, दोनों देशों ने कई मुद्दों पर सहयोग किया, लेकिन 2004 के ऑरेंज रेवोल्यूशन और 2014 के क्रीमिया संकट ने उनके संबंधों में स्थायी तनाव पैदा किया। रूस ने यूक्रेन को हमेशा अपने प्रभाव क्षेत्र में बनाए रखने की कोशिश की, जबकि यूक्रेन ने स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीतिक दिशा निर्धारित करने की कोशिश की।

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